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नहाए कहां से होती है छठ महापर्व की शुरुआत जानिए इसका महत्व नियम

 

जिसमें छठ के पहले दिन नहाय खाय, दूसरे दिन खरना, तीसरे दिन शाम के समय डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य और चौथे दिन उगते सूरज को अर्घ्य दिया जाता है। इस पूजा के चारों दिन लगन और निष्ठा से डूबते हुए सूर्यदेव के साथ-साथ छठी मैया की पूजा की जाती है। लोकमान्यता है कि छठ पूजा के तीसरे दिन यानी “डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य” वाले दिन भगवान सूर्य देव की आराधना की जाती है.
छठ पूजा के तीसरे दिन भगवान सूर्यदेव की आराधना की जाती है. चार दिनों तक चलने वाला यह पर्व बहुत पूर्वांचलवाले धूमधाम से मनाया जाता है. छठ पूजा में विशेष तौरपर सूर्यदेव और छठी मैया की पूजा की जाती है. ऐसा माना जाता है कि इस पूजा में संतान प्राप्ति, संतान की रक्षा और सुख समृद्धि का वरदान मिलता है.
छठ पर्व का तीसरा दिन संध्या अर्ध्य के नाम से जाना जाता है. यह पर्व कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष को मनाया जाता है. इस दिन सुबह से डूबते हुए सूर्य अर्ध्य की तैयारी शुरू हो जाती है. पूजा के लिए लोग प्रसाद में ठेकुआ, चावल के लड्डू बनाते हैं. छठ पूजा के लिए बांस से बनी एक टोकरी ली जाती है.जिसमें पूजा के प्रसाद, फल-फूल, नारियल आदि चीजों को रखा जाता हैं।
सूर्यास्त में थोड़ी देर पहले व्रती महिलाएं अपने पूरे परिवार के साथ नदी के किनारे महिलाएं छठी मैया के गीत गाती हुए घाट पर जाती हैं। इसके बाद व्रती महिलाएं पूजा अर्चना करती हैं। और सूर्यदेव की ओर अपना मुख करके डूबते हुए सूर्य को दूध और जल से अर्ध्य देकर अपने स्थान पर पांच बार परिक्रमा करती है। इसके बाद व्रती महिलाये छठ घाट पर पूजा कर पुनः छठी मैया के गीत गाते हुए अपने घर लौट जाती हैं।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार संयमकाल में सूर्यदेव अपनी पत्नी प्रत्यूषा के साथ रहते हैं. इसीलिए छठ पूजा में व्रती महिला शाम के समय सूर्य की अंतिम किरण को अर्ध्य देकर उनकी उपासना की जाती है। शाम के समय डूबते सूर्य को अर्ध्य करने पर भगवान सूर्यदेव और माता प्रत्यूषा प्रसन्न होकर अपने भक्तों की मनोकामना पूर्ण कर आशीर्वाद प्रदान करती हैं।

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